मृत्यु के बाद आत्मा देह त्याग देती है. आत्मा की शांति
के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किए जाते हैं.


क्या आप जानते हैं प्रेत और पितर में क्या अंतर होता है ?



शास्त्रों के अनुसार प्रेत यानी देह की अस्थायी व्यवस्था.



एक स्थूल देह के अंत के बाद दशविधि, त्रयोदश कर्म-सपिण्डन
तक दिवंगत आत्मा प्रेत शरीर में होती है.


जीवन के त्याग के बाद भी आत्मा के इर्द-गिर्द तृष्णा,
काम, लोभ, क्रोध, वासना, अहंकार, शेष रह जाता है.


सपिण्डन के बाद आत्मा जब अस्थायी प्रेत शरीर से
नई देह में प्रवेश होती है तो वह पितृ कहलाती है.


शास्त्रों के अनुसार जब जीव की मृत्यु होती है,
तो वह प्रेत हो जाता है


प्रेत से पितर में ले जाने की प्रक्रिया ही सपिण्डन कहलाती है.
इसे सपिण्डन श्राद्ध के नाम से जाना जाता है.