पृथ्वीराज चौहान एक राजपूत शासक थे पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता को एक दूसरे से प्रेम था संयोगिता, कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थी मगर जयचंद और पृथ्वीराज एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे जयचंद ने अपनी बेटी का स्वंयवर कराने का निश्चय किया पृथ्वीराज ने इस स्वंयवर का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया तब जयचंद ने पृथ्वीराज की एक मूर्ति द्वारपाल के रूप में स्थापित कर दी स्वयंवर में संयोगिता ने सभी राजाओं को अस्वीकार कर दिया वह दरवाजे पर लगी पृथ्वीराज की मूर्ति को माला पहनाने निकल पड़ीं तभी पृथ्वीराज चौहान वहां पहुंच गए और संयोगिता को दिल्ली ले गए