शास्त्रों पूजा पाठ के नियम बताए गए हैं, भगवान की पूजा
सही समय पर न की जाए तो उसका फल नहीं मिलता.


ईश्वर की पूजा के लिए सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त माना
जाता है, सुबह 4.30 बजे से 5.00 तक ब्रह्म मुहूर्त रहता है.


इस समय की गई पूजा सीधे ईष्ट देव तक पहुंचती है. ब्रह्म मुहूर्त में
तन और मन शांत, शुद्ध होता है, ऐसे में पूजा में मन एकाग्र रहता है.


दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक पूजा नहीं करनी चाहिए.
ये पितरों के पूजन का समय माना जाता है.


शास्त्रों के अनुसार दोपहर में भगवान के विश्राम करने के वक्त होता
है इसलिए इस समय की गई पूजा स्वीकार नहीं होती.


आरती के बीच भगवान पर पूजा सामग्री न चढ़ाएं, क्योंकि इस
समय वह भक्त ईश्वर से संपर्क साधने का प्रयास करता है.


आरती के बीच पूजन करने से भक्त और भगवान के बीच विघ्न
पड़ता है, जो कि गलत माना गया है.


महिलाओं को मासिक धर्म में पूजा करना वर्जित है, क्योंकि इस समय
शरीर अशुद्ध होता है. इस दौरान देव कार्य का फल नहीं मिलता.


जिन लोगों के घर जन्म या मृत्यु हुई है उन्हें भी सूतक काल में पूजा
नहीं करना चाहिए. सूतक को अशुभ माना जाता है.


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