मुगलों के इतिहास में कई ऐसी प्रेम कहानियां हैं, जो प्रचलित हैं इन्हीं में शाहजहां और मुमताज का किस्सा भी दर्ज है मुमताज के अलग अलग जगह दफन होने की कई कानियां हैं 14वें बच्चे को जन्म देते वक्त मुमताज की मौत हो गई थी मुमताज को बुरहानपुर में पापी नदी के किनारे एक बगीचे में दफनाया गया कुछ समय बाद मुमताज के शव को बुरहानपुर से आगरा ले जाया गया 8 जनवरी, 1632 को यमुना किनारे पर दफनाया गया शाहजहां ने तीसरी बार कब्र को दफनाने की योजना बनाई उस भव्य मकबरे का नाम रखा गया ‘रउज़ा-ए-मुनव्वरा’ बाद में इस मकबरे को ताजमहल के नाम से जाना गया