सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के
उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं. आइए जानतें हैं सूरदास के 10 दोहे.


जो पै जिय लज्जा नहीं, कहा कहौं सौ बार।
एकहु अंक न हरि भजे, रे सठ ‘सूर’ गँवार॥


सुनि परमित पिय प्रेम की, चातक चितवति पारि।
घन आशा सब दुख सहै, अंत न याँचै वारि॥


सदा सूँघती आपनो, जिय को जीवन प्रान।
सो तू बिसर्यो सहज ही, हरि ईश्वर भगवान्॥


कह जानो कहँवा मुवो, ऐसे कुमति कुमीच।
सों हेत बिसारिके, सुख चाहत है नीच॥


दीपक पीर न जानई, पावक परत पतंग।
तनु तो तिहि ज्वाला जरयो, चित न भयो रस भंग॥


मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात।
देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात॥


प्रभु पूरन पावन सखा, प्राणनहू को नाथ।
परम दयालु कृपालु प्रभु, जीवन जाके हाथ॥


जिन जड़ ते चेतन कियो, रचि गुण तत्व विधान।
चिकुर कर नख दिए, नयन नासिका कान॥


असन बसन बहु बिधि दये, औसर-औसर आनि।
मात पिता भैया मिले, नई रुचहि पहिचानि॥


देखो करनी कमल की, कीनों जल सों हेत।
प्राण तज्यो प्रेम न तज्यो, सूख्यो सरहिं समेत॥