इस्लामिक बैंक शरीयत क़ानून के हिसाब से काम करते हैं

इनमें और साधारण बैंकों में सबसे बड़ा अंतर ब्याज का होता है

सामान्य बैंक अपने ग्राहकों से कर्ज का ब्याज लेते हैं

इस बैंकिंग की खास बात ये है कि इनमें ग्राहकों से किसी तरह का ब्याज नहीं लिया जाता

इस बैंकिंग की शुरूआत मलेशिया से हुई थी

इस बैंक की ओर से ब्याज ना लेने की वजह ये है कि इस्लाम में ब्याज लेना हराम माना जाता है

इस्लामिक बैंक का कॉन्सेप्ट इस्लाम के बुनियादी उसूल पर आधारित है

यहां आप समय से EMI का भुगतान करते हैं तो बैंक आपको अपने मुनाफे से इनाम दे देता है

यहां से अगर कोई कर्ज लेता है तो उसे सिर्फ मूल रकम ही जमा करनी होती है

जबकि साधारण बैंकों में मोटा ब्याज लिया जाता है और किश्त ना देने पर ब्याज बढ़ा भी दिया जाता है