इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम होता है

मोहर्रम की 10 तारीख को यौमे आशूरा कहते हैं

इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों को शहीद कर दिया गया था

इमाम हुसैन और उनके साथियों ने इंसानियत के लिए अपने आप को कुर्बान कर दिया

इन शहिदों में इमाम हुसैन के सबसे छोटे बेटे अली असगर भी शामिल थे जिनकी उम्र मात्र 6 माह थी

हजरत इमाम हुसैन की इस शहादत को महात्मा गांधी भी नहीं भूल सके

उन्होंने कहा कि मैंने हुसैन से सीखा कि मजलूमियत में किस तरह जीत हासिल की जा सकती है

इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है

गांधी कहते हैं कि भारत को कामयाब मुल्क बनने के लिए लिए नक्श-ए-हुसैन पर चलना होगा

उन्होंने कहा कि मेरे पास हुसैन के 72 सिपाहियों जैसी फौज होती, तो मैं भारत को 24 घंटे में आजाद करा लेता