मनसबदार शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता था

जिन्हें कोई मनसब यानी कोई सरकारी हैसियत या पद मिलता था

इस श्रेणी को मुगलों ने चलाया था

जिसके जरिए मुगल काल में पद, वेतन और सेना में भर्ती, निर्धारित किए जाते थे

पद और वेतन का निर्धारण जात की संख्या पर निर्भर था

एनसीईआरटी के मुताबिक जात की संख्या जितनी अधिक होती थी उनको वेतन उतना ही अधिक मिलता था

मुगल काल में जागीरदार का अपनी जागीर पर पूर्ण अधिकार नहीं होता था

क्योंकि अकबर के समय में ये जागीरदार खुद को जागीर का स्थायी मालिक मान बैठे थे

इतिहासकारों के मुताबिक ऐसे में जागीरदार सल्तनत से कभी भी बगावत कर सकते थे

इसको रोकने के लिए मुगल काल में जागीरदार के जागीर पर बादशाह का नियंत्रण रहने लगा