एकादशी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ और सबसे अधिक पुण्य फलदायी माना गया है. इस व्रत के कुछ नियम है जिनका पालन जरुरी है.

एकादशी का व्रत करने वालों या अन्य सदस्यों को भी इस दिन तुलीस में जल नहीं चढ़ाना चाहिए, इससे व्रत का फल नहीं मिलता.

पौराणिक कथा के अनुसार कि कार्तिक मास की एकादशी के दिन माता तुलसी का श्रीहरि विष्णु के रूप शालीग्राम जी से विवाह हुआ था.

एकादशी व्रत विष्णु जी को समर्पित है, और तुलसी उनकी प्रिय है. कहते हैं कि एकादशी के दिन तुलसी माता निर्जला व्रत रखती हैं.

ऐसे में एकादशी पर तुलसी में जल अर्पित करने या तुलसी को छूने से उनका व्रत खंडित हो जाता है और घर में दरिद्रता का वास होने लगता है.

तुलसी की पूजा से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है लेकिन एकादशी पर तुलसी को जल चढ़ाने उसका पौधा सूखने लगता है.

शास्त्रों के अनुसार तुलसी का पौधा सूखने पर मां लक्ष्मी का घर में वास नहीं होता. परिवार को आर्थिक तंगी झेलनी पड़ती है.

यही वजह है कि तुलसी माता की पवित्रता बनाए रखने के लिए एकादशी पर तुलसी का पत्ता भी नहीं तोड़ा जाता.