नेशनल हिस्ट्री म्यूजियम के अनुसार 4.6 अरब साल पहले हमारा सोलर सिस्टम नहीं था, स्पेस में अंधकार में धूल और गैसों से भरा एक बादल सोलर नैब्यूला घूम रहा था. इसमें कई गैसें थीं, लेकिन सबसे ज्यादा हीलियम और हाइड्रोजन थी.
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रिपोर्ट में बताया गया कि सोलर नैब्यूला के पास एक स्टार में विस्फोट हुआ, जिसके कारण नैब्यूला में एक रिएक्शन शुरू हुआ और फिर धीरे-धीरे सोलर सिस्टम, पृथ्वी और दूसरे ग्रहों का निर्माण हुआ.
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स्टार में हुए इस विस्फोट को सूपरनोवा कहा जाता है. विस्फोट के कारण सोलर नैब्यूला अंदर की और सिकुड़ने लगा, गैस और धूल के कण गुरुत्वाकर्षण बल के कारण इकट्ठा हो जाते हैं और घूमने लगते हैं.
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सोलर नैब्यूला का मटीरियल सिकुड़ता गया और बीच में जाकर इकट्ठा हो गया, जिसके बाद हाइड्रोजन गैस का फ्यूजन रिएक्शन होना शुरू हुआ और हाइड्रोजन हीलियम गैस में बदल गया
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इस तरह सूरज का जन्म हुआ. इसके बाद छोटे-छोटे कण टकराते गए और उन्होंने बड़े पिंडों का निर्माण किया, जिन्हें प्लेनेटेसिमल्स कहते हैं. जब ये प्लेनेटेसिमल्स ग्रेविटी के वजह से इकट्ठा होने लगे और चांद जितने बड़े बन गए तो इन्हें प्रोटोप्लेनेट्स कहा गया.
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सोवियत यूनियन के विक्टर सेफरेनोव ने 1969 में ही पहली बार इस प्रक्रिया के बारे में बताया था. प्रोटोप्लेनेट्स और प्लेनेटेसिमल्स के बीच टकराव हुआ, जिससे ऊर्जा निकली और ग्रेविटी के कारण ये जुड़ते गए और इनका आकार गोल हुआ.
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इसी तरह प्रोटोप्लेनेट्स के टकराने से पृथ्वी का निर्माण हुआ. इस समय को हेडेन इयोन कहते हैं. इस पूरी प्रोसेस में जो ऊर्जा निकलती थी वह चट्टानों को पिघला देती थी और सब जगह लावा था.
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छोटी चट्टानों के पृथ्वी से टकराने के कारण निकलने वाली गर्म ऊर्जा से सोलर नैब्यूला में मौजूद आईस क्रिस्टलों ने पानी का रूप लिया.
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लाखों सालों तक चली इस प्रक्रिया से धरती पर पानी आया, जिस प्रक्रिया को हेडेन ईयोन कहा जाता है.
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भारी एलीमेंट्स जैसे आयरन और निकिल धीरे-धीरे पृथ्वी के सेंटर में इकट्ठा होने लगे और ऑक्सीजन, सोडियम, पौटेशियम, एल्युमिनियम, सिलिकॉन ऊपर की तरफ जमा होते गए. इस तरह सेंटर में पृथ्वी का कोर और ऊपर की तरफ क्रस्ट बना.