मृत्यु के देवता यमराज यमलोक में निवास करते हैं, जो पृथ्वी
से 86,000 योजन दूरी पर दक्षिण में बसा है.


गुरुण पुराण के अनुसार यमराज का राजमहल ‘कालीत्री’ नाम से
जाना जाता है.


यमलोक में चारों दिशाओं में चार द्वार हैं. स्वर्ग का द्वार उत्तर
दिशा में है. वहीं नर्क जाने के लिए दक्षिण दिशा में द्वार है.


यमदूत जीव आत्मा को यमलोक लाते हैं और यमराज कर्मों
के अनुसार आत्मा को स्वर्ग, नर्क, पितृ लोक भेजते हैं.


मृत्यु के बाद आत्मा को यमलोक यात्रा के वक्त यहां कि पुष्पोदका
नदी पर विश्राम का समय मिलता है.


इस नदी पर ही आत्मा को परिजनों के जरिए किया गया पिंडदान
और तर्पण प्राप्त होता है.


यमलोक के रास्ते में वैतरणी नदी भी आती है, कहते हैं जब पापी
आत्मा इसकी ऊपर से गुजरती है तो ये उबलने लगती है.


यमलोक के द्वारपाल हैं वैध्यत और यहां के दो प्रमुख रक्षख के
नाम है महाण्ड और कालपुरुष