Earthworm In Rain: आपने देखा होगा कि बारिश के मौसम में धरती पर केंचुए नजर आने लगते हैं. कई बच्चे यह सवाल भी पूछते हैं कि ये केंचुए कहां से आए? मध्यप्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों में बच्चों को यह बता दिया जाता है कि ये केंचुए बारिश के पानी के साथ गिरते हैं, लेकिन यह सच नहीं है. अब प्रश्न यह आता है कि यह यदि यह उत्तर गलत है तो फिर सही क्या है? अगर केंचुए बारिश के साथ नहीं गिरते तो फिर बारिश के मौसम में ही इतने क्यों दिखाई देते हैं. गर्मी और सर्दी में ये केंचुए कहां गायब हो जाते हैं? आइए कोशिश करते हैं इसका जवाब जानने की -
ऐसे आते हैं जमीन पर केंचुए
आपको बता दें कि केचुए जमीन की सबसे ऊपरी परत के नीचे पाए जाते हैं, जिसे humas कहा जाता है. बरसात के मौसम में जब बारिश पड़ती है तो इससे मिट्टी की ऊपरी परत (humas) अपनी जगह से हट जाती है या बह जाती है और केंचुए तथा अन्य छोटे छोटे जीव जंतु बाहर आ जाते हैं.
ये बारिश में ही क्यों आते हैं ?
अब आप सोच रहे होंगे कि बारिश तो कभी कभी सर्दी या गर्मी में हो जाती है तब ये केंचुए इतनी संख्या में क्यों नहीं निकलते, सिर्फ बरसात में ही क्यों निकलते हैं? दरअसल, बाकी के मौसम इन जंतुओं के लिए प्रतिकूल होते हैं और वे हाइबरनेशन अर्थात शीत निद्रा में चले जाते हैं. ये अपने अनुकूल मौसम आने पर ही बाहर आते हैं. जैसे- सांप, मेंढक, केचुए, छिपकली, भालू.
केंचुए का संक्षिप्त परिचय और उपयोगिता
हमारे देश में सामान्यता पाए जाने वाले केंचुए का वैज्ञानिक नाम Pheritima Posthuma है. केंचुआ ऐनेलिडा संघ का सदस्य है. इसका शरीर कई खंडों का बना होता है. अगर आप इसे ध्यान से देखेंगे तो उसके शरीर पर आपको कई वलय या रिंग जैसी रचनाएं दिखाई देगी. केंचुए के शरीर में 100 से 120 तक खंड होते हैं और यह एक द्विलिंगी (bisexual Or Hermaphodite) प्राणी है अर्थात इसमें नर और मादा जननांग एक ही शरीर में पाए जाते हैं. केंचुए को किसान का मित्र कहा जाता है. कृषि के क्षेत्र में मिट्टी को उपजाऊ बनाने की दृष्टि से केंचुए की बहुत उपयोगिता है. इनको पालने की विधि को वर्मी कल्चर कहते हैं और इनकी बनाई खाद को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं.
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