Ramayan: रामायण में वर्णित है कि भगवान श्री राम ने न चाहते हुए भी जान से प्यारे और आज्ञाकारी अपने छोटे भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड दिया था. आखिर क्यों भगवान राम को अपने भाई लक्ष्मण को मृत्युदंड देना पड़ा था? घटना उस वक़्त की है जब श्री राम रावण का वध करके और लंका विजय करके माता सीता को ले अयोध्या लौट आये थे और अयोध्या के राजा बन गए थे. एक दिन यम देवता कोई महत्तवपूर्ण चर्चा करने के लिए भगवान श्री राम के पास आते हैं. यमराज ने चर्चा प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान राम से कहा की आप मुझे वचन दें कि जब तक मेरे और आपके बीच वार्तालाप होगी, हमें कोई परेशान नहीं करेगा और जो हमारे बीच आएगा, उसे आप मृत्युदंड देंगेंl इसके बाद भगवान राम ने यम देवता को वचन देते हुए भाई लक्ष्मण को यह कहते हुए द्वारपाल नियुक्त किया कि जब तक वो और यम बात कर रहे हैं, वो किसी को भी अंदर न आने दे, अन्यथा उसे मृत्युदंड दिया जायेगा.


लक्ष्मण ने किया अपने पूजनीय भाई की आज्ञा का पालन


लक्ष्मण अपने पूजनीय बड़े भाई की आज्ञा का पालन करते हुए द्वारपाल बनकर खड़े हो जाते हैं. लक्ष्मण को द्वारपाल बने कुछ ही समय बीतता है कि वहां पर ऋषि दुर्वासा आ पधारते हैं और लक्ष्मण से अपने आगमन के बारे में राम को जानकारी देने के लिये कहते हैं, लेकिन लक्ष्मण बड़ी विनम्रता के साथ उनको मना कर देते हैं. इस पर दुर्वासा क्रोधित हो उठते हैं तथा सम्पूर्ण अयोध्या को श्राप देने की बात करने लगते हैं, तब लक्ष्मण शीघ्र ही यह निश्चय कर ये फैसला लेते हैं कि उनको स्वयं का बलिदान देना होगा ताकि वो नगरवासियों को ऋषि के श्राप से बचा सकें और तब उन्होने स्वम ही भीतर जाकर ऋषि दुर्वासा के आगमन की सूचना दी.


अयोध्या को बचाने के लिए लक्ष्मण ने लिया ये निर्णय


इसके बाद श्री राम दुविधा में पड़ गए क्योंकि अपने वचन के अनुसार उन्हें लक्ष्मण को मृत्युदंड देना था. तब इस दुविधा में रास्ता दिखाने के लिए श्री राम ने अपने गुरू वशिष्ठ का स्मरण किया और कोई रास्ता दिखाने की प्रार्थना की. गुरूदेव ने उन्हें समझाया कि अपनी किसी प्रिय वस्तु का त्याग, उसकी मृत्यु के बराबर ही है, इसीलिए तुम अपने वचन का पालन करने के लिए लक्ष्मण का त्याग कर दो, इस प्रकार तुम्हारा वचन भी पूरा होगा और लक्षण मृत्युदंड से भी मुक्त हो जायेंगे, यह सुनकर लक्ष्मण ने बड़े भाई श्री राम से कहा कि भैय्या, आप भूल कर भी मेरा त्याग न करना, आप से दूर रहने से तो अच्छा होगा कि मैं आपके दिए वचन का पालन करते हुए मृत्यु को गले लगा लूँ और ऐसा कहकर राम के जान से प्यारे भाई लक्ष्मण ने जल समाधि ले ली.


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