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Paris Olympics 2024: इस ओलंपियन का छलका दर्द, कहा- "जब मेरा देश जल रहा है, मैं पेरिस ओलंपिक में..."

Paris 2024: पेरिस ओलंपिक 2024 में भाग लेने वाले कई एथलीट अपने संघर्ष की कहानियां लेकर आ रहे हैं. ऐसी ही एक अनोखी कहानी एक क्लाइंबर की है जो युद्ध की आग में जल रहे देश से ताल्लुक रखती है.

Ukrainian Climber Jenya Kazbekova at Paris Olympics 2024: 26 जुलाई से शुरू होने वाले पेरिस ओलंपिक 2024 में अब पांच दिन से भी कम समय बचा है. इसके लिए एथलीट भी पेरिस के लिए रवाना हो रहे हैं. ओलंपिक 2024 में हिस्सा लेने वाले कई एथलीटों की कहानियां सुनने को मिल रही हैं. ऐसी ही एक एथलीट का दर्द भी छलक आया जब उसने अपनी आपबीती बताई. वह एथलीट यूक्रेन की है, जो क्लाइंबर है. उसका नाम है जेन्या काजबेकोवा.

यूक्रेनी क्लाइंबर पहुंची ओलंपिक 2024 में
जेन्या काजबेकोवा का जन्म यूक्रेन के दनीप्रो में 15 अक्टूबर 1996 को हुआ था. वह 2024 यूक्रेन ओलंपिक टीम की सदस्य हैं. बीबीसी रेडियो 5 लाइव से बात करते हुए उन्होंने ओलंपिक 2024 तक पहुंचने के अपने सफर के बारे में बताया. जो काफी इमोशनल और मोटिवेशनल था. उन्होंने इस बातचीत में यह भी बताया कि मेरे देश में लोग मर रहे हैं और मैं पेरिस ओलंपिक जा रही हूं.

यूक्रेन में देखा दर्दनाक दृश्य
यूक्रेनी क्लाइंबर जेनीया कजबेकोवा के जीवन की दिशा तब बदल गई जब वह कीव स्थित अपने घर में सुबह 5 बजे बमों की आवाज़ से जाग गईं. यह उनके जीवन का सबसे भयावह अनुभव था. उन्होंने याद करते हुए बताया, "मैं जागी, अपनी मां की ओर देखा क्योंकि हम एक ही कमरे में सो रहे थे और पूछा, ये क्या था? ये आवाजें कैसी हैं? फिर वही आवाजें फिर से हुईं."

कजबेकोवा और उनके परिवार ने जर्मनी पहुंचने के लिए चार दिनों तक गाड़ी चलाई और फिर पोलिश सीमा पार करने के लिए दो दिन इंतजार किया. उन्होंने बताया, "आप चलते रहते हैं- कभी-कभी आप सीमा की पांच किलोमीटर लंबी लाइन में होते हैं और हर कुछ मिनट में पांच मीटर आगे बढ़ते हैं. आप सो नहीं सकते. आप अपनी सही देखभाल नहीं कर सकते. हम जर्मनी पहुंचे, पूरी तरह थके हुए थे, और हालांकि यह एक बहुत कठिन अनुभव था, हम फिर भी भाग्यशाली थे कि हमारे पास भागने की संभावना थी क्योंकि कई लोग पीछे रह गए थे."

कजबेकोवा ने बताया कि वह अमेरिका के साल्ट लेक सिटी में बस गईं जबकि उनका परिवार मैनचेस्टर में बस गया. लेकिन उनके दादा-दादी ने यूक्रेन में ही रहने का कठिन निर्णय लिया, जिससे कजबेकोवा अपने जीवन के साथ आगे बढ़ते हुए खुद को "खोया हुआ" महसूस कर रही थीं.

कजबेकोवा आगे कहती हैं "मैंने क्लाइम्बिंग में कोई उद्देश्य नहीं देखा. जब मेरे देश के लोग मर रहे हैं तो मैं कंपटीशन क्यों कर रही हूं?" लेकिन उनके कोच ने उन्हें यह एहसास दिलाया कि यदि वह सिर्फ एक व्यक्ति को थोड़ा अधिक परवाह करने, थोड़ा अधिक दान करने के लिए प्रेरित कर पाई तो यह सब मायने रखता है.

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