Paris Olympics 2024: मनु भाकर ने जब टोक्यो ओलंपिक्स में भाग लिया था तब उनकी बंदूक में तकनीकी खराबी आ गई थी. मगर 2024 पेरिस ओलंपिक्स में उन्होंने भारत को पहला पदक दिलाकर इतिहास रच दिया है. पिछले करीब 2 दशकों में भारत के निशानेबाजों ने पूरी दुनिया में परचम लहराया है, ऐसे में आम लोगों के मन में सवाल आना लाजिमी है कि क्या इन एथलीटों की बंदूक असली होती है. अगर बंदूक असली होती है तो उन्हें लाइसेंस कौन देता है? आइए जानते हैं ओलंपिक में इस्तेमाल होने वाली बंदूक में आखिर क्या खासियत होती है?
कहां से मिलती है बंदूक?
आमतौर पर ओलंपिक में दावेदारी पेश करने वाले एथलीटों को उनके देश की राष्ट्रीय ओलंपिक समिति या फिर राष्ट्रीय महासंघ बंदूक मुहैया कराता है. यानी भारत का कोई एथलीट ओलंपिक या किसी अंतर्राष्ट्रीय इवेंट में भाग लेता है तो नेशनल राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) या फिर भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन (IOA) उसे बंदूक मुहैया कराएगी. मगर कई बार एथलीट अपनी पसंद की बंदूक से खेलना पसंद करते हैं, वहीं कई बार स्पॉन्सर भी उन्हें बंदूक देते हैं.
कैसे मिलता है लाइसेंस?
ओलंपिक में भाग लेने वाले निशानेबाजों को भी लाइसेंस लेना पड़ता है. एथलीटों को 1878 में ब्रिटिश सरकार द्वारा लाए गए आर्म्स एक्ट के तहत लाइसेंस लेना होता है. इसके ताकत बिना सरकार की अनुमति के भारत का कोई भी नागरिक बंदूक ना खरीद सकता है और ना उसे बेच सकता है. बता दें कि एथलीटों को आम लोगों की तुलना में बंदूक खरीदने के लिए अधिक छूट भी मिलती है.
कितनी बंदूक और गोलियां खरीद सकते हैं?
नियमों की मानें तो किसी लोकप्रिय निशानेबाज को 12 बंदूक अपने पास रखने की इजाजत है. मगर कुछ शूटिंग एथलीटों को 8-10 बंदूक रखने की अनुमति है. गोलियों की बात करें तो ये एथलीट .22 LR राइफल या पिस्तौल के लिए 5 हजार गोलियां रख सकते हैं. दूसरी ओर पिस्तौल/रिवॉल्वर के लिए 2 हजार गोलियां रखने की इजाजत होती है.
क्या होता है एक बंदूक का प्राइस?
मनु भाकर ने जिस बंदूक से 2024 पेरिस ओलंपिक्स में 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा का ब्रॉन्ज़ मेडल जीता है, वह मोरिनी कंपनी की है. मोरिनी कंपनी के CM 162EI मॉडल की कीमत मार्केट में 166,900 रुपये है. यह .177 एयर गन होती है, जिसकी कीमत कंपनी के हिसाब से कम और ज्यादा हो सकती है. इस बंदूक को खरीदने के लिए कागजी कार्यवाई काफी जटिल होती है.
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