Meerut News: मेरठ में अफसरों की नांक के नीचे करोड़ों का स्टांप घोटाला कर दिया गया. घोटाला करने के लिए किन लोगों ने सिंडिकेट बनाया, इसका खुलासा हो ही नहीं पा रहा है. मामले की गूंज लखनऊ तक भी पहुंच गई है, लेकिन सवाल यही है इस घोटाले की किसी को भनक नहीं लगी या फिर जानबूझकर आंखे बंद कर ली गई.


अब तक की जांच में 997 के करीब फर्जी स्टांप पर बैनामें सामने आ चुके हैं और ये दायरा बढ़ रहा है. ये आंकड़ा बहुत छोटा है, लेकिन जैसे-जैसे जांच का दायरा बढ़ता जाएगा, ये आंकड़ा भी और बढ़ेगा. इस फर्जी स्टांप घोटाले ने अफसरों की नींद उड़ा डाली है. अभी जिन बैनामों की जांच की गई थी उनमें 997 बैनामें सामने आए हैं जो फर्जी स्टांप पर कर दिए गए हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि ये स्टांप ट्रेजरी से खरीदे ही नहीं गए.


सात करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला
स्टांप घोटाला करने वालों के हौंसले देखिए कि कोई उन्हें पकड़ ही नहीं पाया. गुपचुप तरीके से फर्जी स्टांप छापे गए और फिर बेचे भी गए और बैनामें कर दिए गए. अब जांच हुई तो पता चला कि करीब सात करोड़ रुपये से ज्यादा का सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ है, लेकिन इस घोटाले के गेम में कौन-कौन शामिल हैं और किस अधिकारी के संरक्षण में ये काम किया गया, इसका जवाब किसी के पास नहीं है. मेरठ कोषागार की फर्जी मुहर भी बनवाई गई और फर्जी स्टापों पर लगाई भी गई.


2015 से लेकर अब तक बैनामों की होगी जांच
स्टांप घोटाला इतना बड़ा है कि अफसरों को भी पसीना आ गया है. अब साल 2015 से लेकर अब तक के बैनामों की जांच की जाएगी जो दो लाख 27 हजार से ज्यादा हैं. इस जांच में भी करोड़ों के फर्जी स्टांप मिल सकते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि फर्जी और असली स्टांप में फर्क कर पाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि दोनों ही हुबहू नजर आते हैं. अब ये फर्जी स्टांप मेरठ में कहां छापे गए, कहां से यहां लाए गए, किसने इन्हें चलाया और किस-किस को इसमें शामिल किया, इसकी जांच की जा रही है.


फर्जी स्टांप में अधिवक्ता पर भी मुकदमा
करोड़ों के फर्जी स्टांप घोटाले में अब तक तीन मुकदमें दर्ज किए गए थे, लेकिन अफसर खामोश रहे. मामला लखनऊ पहुंचा तो स्टाम्प घोटाले का जिन्न बाहर निकल आया. मेरठ में चौथा मुकदमा अधिवक्ता विशाल शर्मा के खिलाफ भी कायम किया गया है.  सिविल लाइंस के विक्टोरिया पार्क की रहने वाली ओम कुमारी ने पांडव नगर में 55 वर्ग मीटर क्षेत्रफल का आवासीय प्लाट का बैनामा कराया था, जिसमें एक लाख 65 हजार 200 रूपये के स्टांप लगा गए. ये स्टांप अधिवक्ता विशाल शर्मा ने लगाए थे. जांच में सामने आया कि ट्रेजरी से ये स्टांप खरीदे ही नहीं गए. 


डीएम दीपक मीणा ने दिए फॉरेंसिक जांच के आदेश
मामला बेहद गंभीर है और शासन में भी पहुंच गया है. इस बारे में मेरठ के डीएम दीपक मीणा का कहना है कि स्टांप डिपार्टमेंट ने जांच कराई थी, जिसमें बड़ी तादात में बैनामें संदिग्ध पाए गए है. इनकी जांच के लिए एआईजी स्टांप ज्ञानेंद्र सिंह को कहा गया है कि वो इनकी फॉरेंसिक जांच कराए. ट्रेजरी में जांच कराई गई तो बैनामों के कुछ नंबर मिले और कुछ नहीं, जो नंबर मिले वो किसी और ईशु थे. हर पहलू की गंभीरता से जांच कराई जा रही है जो भी दोषी होगा सख्त लेंगे.


ये भी पढ़ें: वाराणसी में देव दीपावली देखने उमड़ेंगे लाखों श्रद्धालु, काशी में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम